Tuesday, August 25, 2009

मसाला है खूब बेचो...

मंगलवार को न्यूज रुम का माहौल काफी गरमाया हुआ था। मै जैसे ही कैफेटेरिया से चाय पीकर न्यूज रुम में घुसा। मेरे एक सहयोगी ने जोर से चीखा। अरे जल्दी ब्रेक करो। उनके मुंह से ये बात निकली ही थी कि मैंने पूछा किया हुआ सर। उधर से जवाब आया। अरे सर शिल्पा शेट्टी की शादी होने वाली है। शिल्पा के पिता दिनेश शेट्टी ने सूरत कोर्ट में अपना पासपोर्ट हासिल करने करने के लिए एक अर्जी दी है। इस अर्जी में उन्होंने कहा है कि मुझे अपनी बेटी की शादी के लिए लंदन जाना है। इसके अलावा बिजनेश के सिलसिले में भी कई देशों में जाना है। इस वजह से मुझे तीन महीने के लिए पोसपोर्ट दिया जाए। इसके बाद मैंने उनसे छोड़िए सर शिल्पा शादी करे या समिता, क्या फर्क पड़ता है। मैं तो अभी तक कुंआरा हूं। मुझे तो कोई लड़की पूछ ही नहीं रही है। ये सुनते ही जवाब आया आप भी सर किस तरह की बातें करते हैं। आप क्या शिल्पा और समिता से शादी करेंगे। हमलोगों के लिए तो ये दोनों मसाला है। अब हमलोगों को तय करना है कि इस मसाले को किस तरह से बेचना है और नोट बटोरना है। ये सुनकर मुझसे रहा नहीं गया। मैंने फिर उनसे कहा सर एक जनर्लिस्ट के मुंह से इस तरह की बातें अच्छी नहीं लगती। इस दौरान हम दोनों की शरीर में बिजली दौड़ रही थी। कभी इसको बता रहे थे कि ये विजुअल कटवाओं कभी रिसर्च से शिल्पा शेट्टी से जुड़ी जानकारियां हासिल कर रहे थे। पूरा न्यूज रुम कुछ समय के लिए शिल्पा मय हो गया था। एंकर चीख-चीख कर कह रहा था कि हम आपको बता रहे हैं एक एक्सक्लूसिव खबर शिल्पा शेट्टी रचाएंगी ब्याह। असाइमेंट के लोग कभी शिल्पा के दोस्त, कभी उसके परिजन और कभी रिपोर्ट को फोन लगा रहे थे। उस समय हर कोई शिल्पा के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी हासिल करने की कोशिश कर रहा था। मामला टीआरपी का था। इस वजह से बॉस लोग भी केबिन छोड़ कर बाहर निकल आए थे। यहीं नहीं वो हर किसी से पूछ रहे थे कि कुछ मिला क्या। पूरे न्यूज रुम में ऐसा लग रहा था,.जैसे शिल्पा उसी समय वहीं ब्याह रचा रही हो।बेचारे मीडियाकर्मी करें भी तो क्या मौजूदा समय की पब्लिक इसी तरह की खबरें देखना पसंद करती है। पब्लिक की पसंद ही है कि सांप-बिच्छू की खबरे दिखाने वाले चैंनलों की टीआरपी सबसे ज्यादा रहती है।

Monday, August 24, 2009

हार ने बनाया चिड़चिड़ा

लोकसभा चुनावों में मिली हार ने बीजेपी नेताओं को चिड़चिड़ा बना दिया है। पराजय की पीड़ा ने पार्टी नेताओं को इस कदर तोड़ दिया है कि वो समझ ही नहीं पा रहे हैं कि करें. तो क्या और कहें, तो क्या। इसी नासमझी का नतीजा है कि पार्टी नेताओं की जुबान बेलगाम हो गई है। हर नेता की जुबान से निकली हुई बात पार्टी को पतन की ओर ढकेल रही है। पहले जसवंत सिंह ने चिट्टी लिख कर पार्टी में बवंडर मचाया, तो फिर जसवंत सिंहा ने। कभी किसी नेता ने ये सोचने की जहमत नहीं उठाई कि
जनता ने उन्हें क्यों नकारा। मौजूदा समय में बीजेपी नेता आत्म मंथन करने की बजाय एक-दूसरे को नीचा दिखाने में जुटे हैं। इसी वजह से उतराखंड में बीसी खंडूरी की कुर्सी गई और अब वसुंधरा राजे की बारी है। उनकी विदाई की भी स्क्रीप्ट लिखी जा चुकी है। इस समय बीजेपी नेताओं की दशा खिसियानी बिल्ली खंभा नोंचे जैसी हो गई है। सीधे शब्दों में कहे, तो बीजेपी विघटन की कगार पर है और बहुत जल्द ही पार्टी में बंटवारा होने वाला है। इसकी शुरुआत जसवंत सिंह के निष्कास और सुधीर कुलकर्णी के इस्तीफे से शुरू हो चुकी है। अब बारी अरुण शौरी की है। अरुण शौरी ने तो मान मर्यादा की सारी सीमाएं लांघते हुए पार्टी को प्राइवेट कंपनी तक करार दे दिया है। उन्होंने बीजेपी को कटी पतंग बताते हुए आरएसएस से सभी बड़े नेताओं को हटाकर पार्टी को अपने कब्जे में लेने की गुहार लगाई है। यहीं नहीं उन्होंने राजनाथ सिंह हम्टी-डम्टी कह कर पार्टी हुक्कमरानों से साफ कह दिया है कि मुझे अब मुक्त करो। मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि आखिर बीजेपी नेता इतने हताश क्यों हैं। वो जनता के बीच जाना क्यों नहीं चाह रहे हैं। जब तक वो जनता के बीच नहीं जाएंगे, जनता के लिए काम नहीं करेंगे, तब तक वो चाहे अगल पार्टी बनाएं या फिर किसी पार्टी में शामिल हो जाएं, जनता नकारती रहेगी। बिना काम किए एक बार नहीं हजारों बार उन्हें हार का मुंह देखना पड़ेगा। अब नब्बे की दशक जैसी हलात नहीं है कि राम के सहारे उनकी नैया पार लग जाएगी। जनता अब बीजेपी नेताओं की हकीकत जान चुकी है। अब वो केवल और केवल काम को देख कर ही इन्हें वोट देगी।

Friday, August 21, 2009

बीजेपी की भूल

शिमला के चिंतन बैठक में बीजेपी ने अपने एक सिपाही से रिश्ता तोड़ लिया। पार्टी ने अपने उस कद्दावर नेता से मुंह मोड़ लिया, जो पिछले तीस सालों से उसके साथ जुड़ा हुआ था। बीजेपी नेताओं ने शिमला पहुंचे के बाद सबसे पहला काम जो किया, वो था जसवंत सिंह का निष्कासन। हालांकि जसवंत के निष्कासन की स्क्रीप्ट दिल्ली में लिखी जा चुकी थी। शिमला में तो उसे महज सार्वजनिक करना था। दिन में करीब एक बजे पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने जसवंत सिंह को फोन करके उन्हें पार्टी के सभी पदों से हटाने की खबर सुनाई। इससे पहले राजनाथ सिंह ने जसवंत सिंह को फोन करके बैठक में शामिल नहीं होने को कहा था, लेकिन तब तक वो शिमला के लिए रवाना हो चुके थे। जसवंत सिंह पार्टी अध्यक्ष की बात को मान कर बैठक में शामिल नहीं हुए। वो अपने लिए अलग होटल बुक कर पार्टी के फैसले का इंतजार करते रहे। उनकी इंतजार की घड़ी लंबी नहीं हुई। पार्टी अध्यक्ष ने चंद ही घंटे में फोन के जरिए अपना फैसला सुना दिया, लेकिन पार्टी ने जिस तरह से ये फैसला लिया। उससे लोकसभा चुनावों में मिली हार और उसकी बौखलाहट साफ दिखा पड़ रहा है। आखिर जसवंत सिंह ने ऐसी कौन सी गुनाह कर दी है, जिसकी वजह से पार्टी ने उनके साथ ऐसा वर्ताव किया। उनका गुहान सिर्फ इतना ही है कि उन्होंने अपनी किताब में जिन्ना को धर्मनिरपेक्ष करार दिया। साथ ही देश के बंटवारे के लिए जिन्ना के साथ ही सरदार बल्लभ भाई पटेल और नेहरु को भी जिम्मेदार ठहराया है। अगर जिन्ना को धर्मनिरपेक्ष बताने की वजह से जसवंत सिंह को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है, तो फिर आडवाणी के खिलाफ पार्टी ने कोई कार्रवाई क्यों नहीं कर रही है। आडवाणी तो ये गुनाह काफी पहले कर चुके हैं। पार्टी का ये दोहरा मापदंड हमारे समझ से परे है। एक तरह से कहें, तो बीजेपी ने इस कार्रवाई के जरिए जसवंत सिंह के मौलिक अधिकारों का हनन किया ठीक है कि जसवंत सिंह ने पार्टी के विचारधारा के खिलाफ बातें लिखी और इसके लिए उनके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए, लेकिन ये कैसी नीति है कि उन्हें अपने पक्ष को रखने का मौका भी नहीं दिया जाए। उनसे ये नहीं पूछा जाए कि आपने ऐसा क्यों किया। शायद बीजेपी में बैठे जसवंत के विरोधी गुट के नेताओं को ये लग रहा होगा कि इस कार्रवाई को पार्टी जनता के दिल को जीत लेगी, तो ये उनकी भूल है। इससे जनता के बीज पार्टी की छवि और खराब हुई है। जनता को मौजूदा समय में जिन्ना या नेहरू की महिमा मंडल करने की नहीं, बल्कि रोजी और रोटी की दरकार है।

Sunday, August 16, 2009

भारत और अमेरिका में फर्क

पंद्रह अगस्त को मैं अपने एक दोस्त के साथ बैठ कर टीवी देख रहा था। उस समय सभी न्यूज चैनल लाल किले से किए गए प्रधानमंत्री के वादों पर टिप्पणी कर रहे थे, तभी टेलीविजन स्क्रीन एक ब्रेकिंग न्यूज फ्लैश हुई। वो खबर थी कि अमेरिका में बॉलीवुड के बादशाह शाहरुख खान को अपमानित किया गया। इसकी अगली लाइन थी कि शाहरुख को पूछताछ के लिए नेवार्क-न्यूजर्सी एअरपोर्ट पर दो घंटे तक बैठाया गया। इतना पढ़ने के बाद मैंने कहा साले अमेरिकी एशियाई मुल्क के लोगों के साथ अक्सर इस तरह का सलूक करते रहते हैं, लेकिन हमलोग अपमान का घूंट पीने के बाद भी चुप रह जाते हैं। इसके बाद मेरे दोस्त ने मुझसे कहा कि इतने पढ़े लिखे होने के बाद भी तुम्हारी मानसिकता गुलामों जैसी है। तुम भी पूछताछ को अपमान मानते हो। उसने कहा कि कम से कम तुमसे तो ये उम्मीद नहीं थी कि इस तरह की बातें करोगे। आगे उसने कहा कि अच्छा ये बताओ कि हवाई अड्डे के कर्मचारियों ने क्या बुरा किया। उसने कहा कि हवाई अड्डे कर्मचारियों को पूरा हक है कि जब तक वो पूरी तरह से संतुष्ट ना हो जाए कि कौन व्यक्ति कहां से आया है और कहां जाएगा, उसे बैठा सकते हैं। उससे पूछताछ कर सकते हैं। सुरक्षा के नजरिए से यही उचित हैं। इस पर मैंने कहा कि हमारे यहां, तो किसी अमेरिकी सिलेब्रिटी के साथ इस तरह से पूछताछ नहीं की जाती है, तो उसने फिर मुझे रोका और कहा कि यही तो भारत और अमेरिका में फर्क है। वो अपने अपने देश की सुरक्षा के लिए पूरी तरह सतर्क रहते हैं, लेकिन हम इस मामले में काफी लापरवाह हैं। उसने कहा कि अमेरिका का राष्ट्रपति आम आदमी से भी माफी मांग लेता है। वहीं हमारे यहां सिलेब्रिटी अपने आपको भगवान मानते हैं। उसने कहा कि अमेरिका के इसी रवैए की वजह से नाइन इलेवन के बाद आज तक कोई आतंकी हमला नहीं हुआ, जबकि भारत में हर समय होते रहते हैं। वहां के लोग अपनी गलतियों से सीख लेते हैं, लेकिन हमलोग उसे बार-बार दोहराते हैं। उसने मुझसे पूछा कि अच्छा ये बताओ कि जब एक आम आदमी की जांच की जा सकती है, तो शाहरुख खान की क्यों नहीं। फिर उसने कहा कि देखना अब इसको लेकर हमारे देश में कितने जाहिल जपाट लोग जुलूस निकालेंगे। हुआ भी यही सलमान खान ने जब शाहरुख खान के साथ हुई पूछताछ को आम घटना बता दिया, तो कुछ आवारा प्रवति के लोग पहुंच गए सलमान के घऱ और करने लगे नारेबाजी। इसके बाद मुझे अपने आप पर बहुत ग्लानि हुई और मैंने पाया कि उस समय मैं गलत था और मेरा दोस्त सही।

Wednesday, August 12, 2009

बेशर्मों की मंडी बोले तो सच का सामना

इस समय टेलीविजन चैनलों ने मंडी लगा रखी है। इस मंडी को किसी ने इस जंगल से मुझे बचाओ नाम दिया है, तो कोई इसे सच का सामना नाम से पुकार रहा है। नोट के बल पर इस मंडी की ऐसी पैकेजिंग की गई है कि लोग देख कर हैरान रह जाते हैं। अब आप सोच रहे होंगे कि जब मंडी की इतनी अच्छी पैकेजिंग हुई है, तो सामान भी बढ़िया बिक रहा होगा। इस बारे में मैं सिर्फ इतना ही कहूंगा कि बिकने वाला सामान बढ़िया ही नहीं बहुत बढ़िया है। इस मंडी में जिस्म की बोली लगाई जा रही है। टेलीविजनवाले मुंह मांगा दाम देकर हमसे अपनी इज्जत को नीलाम करने के लिए कह रहे हैं, लेकिन इसमें उनका क्या कसूर है। पैसे की चाह ने हमसभी को इस कदर अंधा बना दिया है कि हम खुद खुशी-खुशी नंगा होकर उनके बाजुओं में जाकर बैठने को तैयार हो जा रहे हैं। पैसे के लिए जहां सुंदरियां जंगल में जाकर झरने के लिए नंगे नहा रही हैं, वहीं स्टार प्लस के कार्यक्रम सच का सामना में हमलोग अपने कुकर्मों के बारे में दुनिया को अगवत करा रहे हैं। स्टार प्लस अपने होस्ट राजीव खंडेवाल के माध्यम से इस कार्यक्रम में हमलोगों से नाजायज रिश्तों के बारे में पूछ रहा है और हम बिना सहमे बड़े ही बेशर्मी से उन रिश्तों के बारे में बता रहे हैं। इस दौरान हॉट सीट पर बैठे लोगों के सामने उनके बेटे, बेटी, पत्नी और सगे-संबंधी भी मौजूद रहते हैं। इस कार्यक्रम में किसी से पूछा जाता है कि क्या आपने अपनी बेटी से कम उम्र की लड़की से सेक्स किया है, तो किसी से शादी शुद्धा होने के बाद भी गैर मर्द से बच्चा पैदा करने की चाहत पूछी जाती है। किसी से सवाल किया जाता है कि क्या आपने किसी लड़की से गर्भ गिराने के लिए दबाव डाला है, तो किसी से नाबालिग अवस्था में गर्भवती होने की वजह से कॉलेज से निकाले जाने के बारे में बताने को कहा जाता है। अब हम इस कार्यक्रम के पेश करने वालों से एक सवाल पूछना चाह रहे हैं कि सच को मापने का पायमाना केवल अवैध संबंध है। क्या इसी के जरिए किसी सच बोलने और नहीं बोलने का आंकलन किया जा सकता है। क्या इसी तरह के कार्यक्रम के जरिए ही किसी को साहसी होने और नहीं होने का प्रमाण पत्र दिया जा सकता है। अगर हां, तो इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने वाले महापुरुषों को अपने नाबालिग बेटे और बेटियों से भी ये पूछना चाहिए कि क्या तुम्हारा किसी से अवैध संबंध हैं। क्या इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने वाले लोग अपने मासूम बच्चों के इस तरह की गलतियों को बर्दास्त कर सकेंगे। इस सवाल का जवाब सिर्फ और सिर्फ नहीं हैं। मुझे तो हैरानी इस बात की है कि इस कार्यक्रमों को देखने के बाद भी सूचना और प्रसारण मंत्रालय चुप क्यों बैठा है। इस तरह के कार्यक्रम पर तत्काल रोक लगानी चाहिए, नहीं तो वो दिन दूर नहीं जब मासूम बच्चे भी बिना डरे सबसे सामने ये कहते पाए जाएंगे कि मैं इससे शारीरिक संबंध बनाना चाहती/चाहता हूं। मेरे इतने से नाजायज रिश्ते हैं। सही मायने में स्टार प्लस का कार्यक्रम हमसभी को पशुता की ओर ले जा रहा है।

बाबा का बड़बोलापन

एक हैं बाबा राम देव। वैसे तो बाबा योग गुरु हैं, लेकिन भोग में भी इनकी गहरी दिलचस्पी है। राजनीति हो या फिल्म, अध्यात्म हो या कर्मकांड सभी क्षेत्रों में बाबा टांग अड़ा देते हैं। कभी ये फिल्म सितारों पर चुस्की लेते हैं, तो कभी राजनीति में आने की बात करते हैं। सुर्खियों में बने रहने के लिए बाबा समय-समय पर ऐसी वाणी बोलते रहते हैं, जिससे मीडिया का ध्यान इनकी ओर आकर्षित हो जाता है। हाल ही में लगे सदी से सबसे लंबे सूर्यग्रहण के पहले बाबा ने मीडिया के माध्यम से ज्योतिषियों को चुनौती देकर वाहवाही बटोरी थी, लेकिन इसके बाद ये मीडिया की नजरों से दूर हो गए थे। हर जगह हर पल बाबा की चर्चा ना हो ये इन्हें कतई बर्दास्त नहीं है। बाबा का एक ही फंडा है कि चर्चा में बने रहने के लिए कुछ भी करेगा। इस बार बाबा रामदेव ने आदि गुरु शंकराचार्य के सिद्धांत ब्रह्म सत्यं जगत मिथ्या को चुनौती देकर मीडिया का ध्यान खींचा है। बाबा ने शंकराचार्य के दार्शनिक सूत्र और सनातन धर्म का बुनियादी सिद्धांत पर सवालिया निशान लगाते हुए कहा है कि इसने लोगों के काम करने की प्रवृति को नष्ट किया है। बाबा की इस कटु वाणी से देशभर के शंकराचार्य और धर्मगुरु नाराज हैं। कई धर्म गुरुओं ने तो यहां तक कह दिया है कि रामदेव को शंकराचार्य के बारे में जानकारी नहीं हैं। बहरहाल मैं तो ये नहीं कह सकता हूं कि बाबा को शंकराचार्य या सनातन धर्म के बार में जानकारी है या नहीं, लेकिन इतना जरुर कहूंगा कि बाबा कि इन उलजलुल बातों में पड़ने की बजाय योग के माध्यम से लोगों की सेवा करनी चाहिए।

Monday, August 10, 2009

बूटा का कुर्सी मोह

कुछ समय पहले एक मूवी आई थी लव के लिए साला कुछ भी करेगा....। यह टाइटिल वर्तमान समय के राजनीतिज्ञों पर बिल्कुल सटीक बैठता है। फर्क सिर्फ इतना है कि नेता जी लोग लव के जगह कुर्सी शब्द का इस्तेमाल करते हैं। यानि सीधे शब्दों में कहें, तो कुर्सी के लिए साला कुछ भी करेगा...। अब आप बूटा सिंह को ही ले लीजिए। इन्हें कुर्सी से इस कदर लगाव है कि वे उसे छोड़ना ही नहीं चाहते हैं। बूटा सिंह मौजूदा समय में अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष हैं। १९३४ में पंजाब के जलंधर जिले में पैदा हुए बूटा सिंह केंद्रीय गृहमंत्री और राज्यपाल जैसे पदों पर भी आसीन रहे हैं, लेकिन इसके बाद भी उनका कुर्सी से मोह भंग नहीं हुआ है। वे आज भी कुर्सी को जकड़े हुए हैं। सही मायने में बूटा सिंह कलयुग के धृतराष्ट्र हैं, जो अपनी इज्जत, तो गंवा सकता है, लेकिन कुर्सी नहीं। हाल ही में बूटा सिंह के बेटे सरबजोत सिंह पर एक करोड़ रुपए रिश्वत लेने का आरोप लगा है। इसको लेकर सरबजोत जेल भी गए थे। मामला अल्पसंख्यक आयोग से जुड़ा हुआ है। इस वजह से विरोधी पार्टी के नेताओं ने बूटा सिंह पर हमला बोला। विपक्षी पार्टी के नेताओं ने बूटा सिंह से इस्तीफे की मांग की। इसके बाद बूटा सिंह ने आनन -फानन में प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाया और बेटे पर लगे आरोपों को राजनीति साजिश करार दे दिया। बूटा सिंह यहीं नहीं रुके। उन्होंने विरोधियों पर अपने राजनीतिक करियर को चौपट करने का आरोप लगाया और साफ कह दिया कि मैं मर जाऊंगा, लेकिन इस्तीफा नहीं दूंगा। अब आप खुद ही बताइए कि बूटा सिंह के इस हठ धर्मिता को क्या कहेंगे। छोड़िए आप जो भी कहें, लेकिन मैं तो यहीं कहूंगा कि कमाल के हैं बूटा सिंह और कमाल का है उनका कुर्सी मोह।

Sunday, August 9, 2009

आजाद की अनैतिक वाणी

इस समय पूरी दुनिया स्वाइन फ्लू नाम की महामारी से जुझ रही है। इस बीमारी ने कई जिंदगियों को निगल लिया है। अभी तक चार भारतीयों की भी जाने गई हैं। भारत में सबसे पहले इस बीमारी से पूणे में एक चौदह साल की लड़की की मौत हुई थी। रीदा शेख नाम की इस लड़की की मौत से परिजन दुखी हैं। सबने इस घटना पर खेद प्रकट किया, लेकिन उसी व्यक्ति ने खेद नहीं जताया, जिसे सबसे पहले जताना चाहिए था। मेरा इशारा हमारे देश के स्वास्थ्यमंत्री गुलाम नबी आजाद की ओर है। उन्होंने रीदा की मौत को लेकर बयान तो दिया, लेकिन उस बयान ने रीदा के परिजनों के दुख को कम करने की बजाय और बढ़ा दिया। उन्होंने एक टेलीविजन चैनल पर बैठ कर कहा कि रीदा इलाज के लिए तीन अस्पतालों में गई थी। इस तरह से उसने पिचासी लोगों में स्वाइन फ्लू के वायरस को फैलाया। आजाद के इस बयान से परिजन हैरान हैं। अब वे आजाद से माफी और इस्तीफे की मांग कर रहे हैं। वैसे उनकी ये मांग उचित भी है। आजाद ने ऐसा काम ही किया है कि उसे किसी भी तरह से जायज नहीं ठहराया जा सकता है। आजाद का ये बयान उनकी गैर जिम्मेदार रवैए को दर्शाता है। किसी भी देश के स्वास्थ्यमंत्री की मुंह से इस तरह के बयान की अपेक्षा जनता कभी भी नहीं कर सकती है। रीदा की जगह अगर आजाद की बेटी की मौत हुई होती, तो क्या वे इस तरह का बयान देते। क्या वे उस समय भी कहते की मेरी बेटी का इलाज तीन अस्पतालों में हुआ है और उसके संपर्क में आने से पिचासी लोगों में बीमारी फैली है। जिसके हाथों में देशभर के लोगों के स्वास्थ्य की देखभाल करने की जिम्मेदारी है, उस नेता के मुंह से इस तरह का बयान निकलना चिंतनीय है। आजाद को इस तरह का बयान देने से बाज आना चाहिए और अपनी इस गलती पर रीदा के परिजनों के साथ ही पूरे देश की जनता से माफी मांगनी चाहिए। चलीए मान लेते हैं कि रीदा ने पूणे में पिचासी लोगों एच1एन1 वायरस को फैलाया है, लेकिन इस ये बीमारी देश के बाकी हिस्सों में भी फैली है। इससे रोग से ग्रसित मरीजों की गुजरात और मुंबई में भी मौते हुई हैं। क्या आजाद साबह ये बताएंगे कि देश के जिन, जिन इलाकों में ये बीमारी फैली है, उन सभी जगहों पर रीदा इलाज कराने के लिए गई थी। वातानुकुलित कमरों में बैठ कर इस तरह का बयान देना बहुत आसान होता है। आजाद को इस तरह के बयान देने की बजाय स्वाइन फ्लू से निपटने के बारे में विचार करना चाहिए। वे किसी दुखी परिवार के घाव पर मरहम नहीं लगा सकते हैं, तो कम से कम उसे उकेरे, तो नहीं। वातानुकुलित कमरे में बैठ कर बयान दे देना बहुत आसान होता है, लेकिन काम करके दिखाना बहुत कठिन। मैं ये नहीं कह रहा हूं कि सरकार इस बीमारी को लेकर चिंतित नहीं है, लेकिन जितनी तत्परता इससे निपटने के लिए दिखानी चाहिए थी, उतनी तत्परता देखने को नहीं मिल रही है। पूरी दुनिया इस हकीकत को जानती कि स्वाइन फ्लू एक-दूजे के संपर्क में आने से फैलता है। देश में अब तक स्वाइन फ्लू के 783 मामले सामने आ चुके हैं, जिसमें 500 रोगियों का इलाज हो चुका है। इस घातक बीमारी का सबसे अधिक असर दिल्ली और महाराष्ट्र में देखा जा रहा है।