Wednesday, September 16, 2009
तुगलकों की भरमार है...
कौन कहता है कि तुलगलों का शासन समाप्त हो गया है? कौन कहता है कि तुगलक अब हमारे देश में ही नहीं हैं? मेरी नजर में तो भारत में तुलगकों की भरमार है। मौजूदा समय में भी उन्हीं का शासन है। हां फर्क सिर्फ इतना है कि इस समय के तुगलकों को मोहम्मद बिन तुकलक या ग्यासुद्दीन तुगलक के नाम से नहीं जानते हैं। उन्हें हम महेंद्र सिंह टिकैत और राजनाथ सिंह जैसे नामों से पुकारते हैं। ये लोग भी ठीक तुगलकों की अंदाज में ही अपना फरमान सुना रहे हैं। हालिया फरमान खुद को पश्चिमी यूपी में किसानों के नेता कहने वाले महेंद्र सिंह टिकैत की ओर से आया है। उन्होंने कहा है कि एक ही गोत्र में शादी करने वालों को पहले सबके सामने बेइज्जत करना चाहिए। अगर वे फिर भी न मानें, तो जान से मार देना चाहिए। उन्होंने ये फतवा मुजफ्फरनगर में एक जाट पंचायत में जारी किया है। इस पंचायत में उन्होंने ऐसे जोड़ों के परिजनों का सामाजिक बायकॉट करने का भी ऐलान किया। इससे पहले एक फतवा बीजेपी नेता राजनाथ सिंह की तरफ से जारी किया गया था। हरियाण के हिसार में अपनी मूंछों पर ताव फेरते हुए उन्होंने कहा था कि जिन्ना के बारे में बात करने वालों के लिए बीजेपी में कोई जगह नहीं है। यानि जो जिन्ना के बारे में बोलेगा, वो बाहर जाएगा। राजनाथ सिंह का ये बयान जसवंत सिंह की किताब जिन्ना, भारत-विभाजन के आईने में’ पर उठे बवाल के बाद आया था। उस समय बीजेपी ने जसवंत सिंह को बाहर का रस्ता भी दिखा दिया था।
Tuesday, September 15, 2009
जरा सोचिए......
आज मैं बात करने जा रहा हूं एक ऐसी हकीकत के बारे में, जिसे पढ़ने के बाद माथे पर चिंता की लकीरें गहरा जाएंगी। मन में सिहरन पैदा हो जाएगी। आंखों के सामने हिरोशिमा और नागासाकी का मंजर घूमने लगेगा। जी हां मैं बात करने जा रहा हूं न्यूक्लियर बमों की, जिसने इन दोनों शहरों में ऐसा कहर बरपाया था कि दशकों बाद सिचुएशंस पूरी तरह नहीं सुधर पाई हैं। ये तो बात हुई द्वितीय विश्व युद्ध के समय की अब नजर दौड़ाते हैं मौजूदा समय में दुनिया पर मंडरा रहे खतरों की। वर्तमाम समय में दुनिया अंगारों पर खड़ी हैं। भूल से भी किसी दुष्ट ने एक तिल्ली जला दी, तो पुरी धरती धधक उठेगी। धरती तहस-नहस हो जाएगी। जिस तरह से दुनिया भर में इस समय न्यूक्लियर बमों की होड़ लगी हैं, वो चिंतनीय है। इस समय दुनिया भर में तेईस हजार से ज्यादा न्यूक्लियर बम है। ये बम पलक झपकते ही पुरी दुनिया को नष्ट कर देने की कुबत रखते हैं। इन बम में से इक्कासी से ज्यादा बम कभी भी दागे जाने की सिचुएशन में हैं। एफएएस के रिपोर्ट के मुताबिक भारत के लिए हालात और भयावह है। ऐसा मैं इस वजह से कह रहा हूं क्योंकि कि भारत के दुश्मन नंबर वन पाकिस्तान के पास भारत से ज्यादा न्यूक्लियर वेपंस हैं। फेडरेशन ऑफ अमेरिकन साइंटिस्ट की ओर से जारी रिपोर्ट में वर्ल्ड की नौ कंट्रीज के पास ही तेईस हजार तीन पिचानवें न्यूक्लियर वेपंस हैं। रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि पाकिस्तान के न्यूक्लियर वेपंस की संख्या अब भारत के न्यूक भंडार से ज्यादा है। हथियारों की होड़ में रूस सबसे आगे हैं। रूस का परमाणु जखीरा तेरह हजार बमों का है। वहीं नौ हजार चार सौ न्यूक वेपंस के साथ अमेरिका दूसरे नंबर पर हैं। चीन तीन वेपंस के साथ तीसरे और फ्रांस दो सौ चालीस बमों के साथ फ्रांस चौथे नंबर पर है। इस मामले में ब्रिटेन पांचवीं पोजीशन पर है। ब्रिटेन के पास एक सौ पिचासी बम हैं। इस तरह संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों के पास ही तेईस हजार एक सौ पच्चीस न्यूक वेपंस हैं। दुनिया के कुल न्यूक वेपंस का अंठानवें दशमलव पांच फीसदी है। रूसी जखीरे में सत्ताईस सौ नब्बे वेपंस रणनीतिक, दो हजार पच्चास गैर रणनीतिक और चार हजार आठ सौ चालीस ऑपरेशनल हैं।वहीं अमेरिका के पास दो हजार छब्बीस रणनीतिक, पांच सौ गैर रणनीतिक और दो हजार छह सौ तेईस ऑपरेशनल वेपंस हैं। इस रिपोर्ट में इजरायल, पाकिस्तान, भारत और नॉर्थ कोरिया के पास गैर रणनीतिक एवं ऑपेरशनल यानी दागने के लिए तैयार वेपंस की संख्या अनुपलब्ध बताई गई है। अब आप खुद ही बताइए की किस आधार पर हमारे नेता विश्व शक्ति बनने का दंभ भरते हैं।
Monday, September 7, 2009
कपिलाई मार गई...कपिलाई मार गई
एक हैं जनाब कपिल सिब्बल। पेशे से मशहूर वकील रहे हैं और मौजूदा समय में मानव संसाधन विकास मंत्री है। पहले इनकी काबिलियत पर मुझे जरा सा भी संदेह नहीं था, लेकिन अब मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि जो मंत्रालय इन्हें दी गई है, उसके लायक नहीं हैं। मानव संसाधन विकास मंत्री बने इन्हें अभी छह महीने भी नहीं हुए हैं। इतने कम समय में ही इन्होंने जो कारनामा किया है, उसे जानकर पूरा देश हैरान है। लोगों ने इनसे उम्मीद लगा रखी थी कि पढ़े-लिखे हैं,शिक्षा का विकास करेंगे, लेकिन इन्होंने विकास की बजाय विनाश करना शुरू कर दिया। सोमवार को सिब्बल साहब ने बड़े ही शान से ऐलान किया कि 10वीं की बोर्ड परीक्षा 2011 से वैकल्पिक कर दी जाएगी और 2010 से ग्रेडिंग प्रणाली लागू हो जाएगी। यानी सीधे शब्दों में कहें, तो अब सीबीएसई के स्कूलों पढ़ने वाले बच्चों को दसवीं बोर्ड की परीक्षा देने का तनाव नहीं झेलना पड़ेगा। जिस छात्र की मर्जी होगी, बोर्ड की परीक्षा देगा और जिसकी मर्जी नहीं होगी, वो नहीं देगा। इस घोषणा ने उनकी काबिलयत पर ही सवालिया निशान लगा दिया है। महज दो वाक्यों वाली इस घोषणा ने देश के उन करोड़ प्रतिभाव छात्रों से ऐसा भद्दा मजाक किया है, जो अपने बूते मुकाम हासिल करने की हैसियत रखते हैं। मंत्री जी ने अपने फैसले के लिए दलील दी है कि इससे छात्र आत्महत्या जैसे कदम नहीं उठाएं, लेकिन मैं, तो कहता हूं कि अब और छात्र आत्महत्याएं करेंगे। हां फर्क सिर्फ इतना होगा कि पहले मंद बुद्धि के छात्र आत्महत्या करते थे। अब विलक्षण प्रतिभा के धनी छात्र करेंगे। इस घोषणा के साथ ही देशभर के छात्र ये गीत गाने लगे हैं कि एक तो आरक्षण की लड़ाई मार गई, दूसरे रिश्वतखोरों की बेवफाई मार गई, तीसरे पोपुलेशन की अंगड़ाई मार गई, चौथे चुतिया नेतों की चतुराई मार गई बाकी कुछ बच्चा तो कपिलाई मार...कपिलाई मार गई।
Sunday, September 6, 2009
काश ऐसा होता....
कल रात एक दोस्त ने मुझसे कहा कि यार मैं तुम्हें एक ऐसी खबर सुना रहा हूं, जिसे सुनकर तुम हैरान रह जाओगे। मैंने हंसते हुए उससे पूछा ...आखिर ऐसी कौन सी खबर है, जिसे सुनाने के लिए तुम इतने उतावले हो रहे हो। इसके बाद उसने कहा कि बिहार के मोतिहारी जिले में कुत्ता, बिल्ली और तोता एक ही थाली में खाना खाते हैं। यहीं नहीं वो तीनों एक ही साथ सोते हैं। वो आपस में ठिठोलिया भी करते हैं, लेकिन हैरानी की बात ये है कि वो कभी लड़ाई भी नहीं करते । पहले तो मुझे इस पर यकीन नहीं हुआ, लेकिन फिर मैंने उससे पूछा कि ये बातओ ऐसा कारनामा किसने किया है। मेरी बातों को सुनकर उसने कहा कि इस कारनामे को करने वाली एक शिक्षिका है और उसका नाम है शशिकला। महारानी जानकी कुंवर गर्ल्स इंटर कालेज की प्रिंसिपल शशिकला को जानवरों और पंक्षियों से बेहद लगाव है। इसी लगाव की वजह से उन्होंने अपने घर इन तीनों को पाल रखा है। वो इन तीनों को अपने बच्चे की तरह प्यार देती है। ठीक इसी तरह ये तीनों भी उनसे प्यार करते हैं। उन्होंने कुत्ते का नाम टफी रखा है, जबकि बिल्ली का नाम पुसी। वो तोते मीठू नाम से पुकारती हैं। उसकी इन बातों को सुनकर अनायास ही मेरे मुंह उह शब्द निकल पड़ा। मैंने अपने दोस्त से कहा कि काश शशिकला जी उन जाहिलों के दिलों ऐसी प्रेम भावना भर पाती, जो बात-बात पर मारने-मरने को तैयार हो जाते हैं। काश वो राज ठाकरे जैसे नेताओं के दिलों में ऐसी प्रेम पनपा पाती, जो अपनी सियासी रोटियां सेंकने के लिए क्षेत्रियता का बीज बोते हैं। लोगों के दिलों में नफरत की भावना भरते हैं। काश बिहार के उन इलाकों में इस तरह की प्रेम की अलख जगा पाती, जिन इलाकों में लोग पढ़ने की बजाय गुड़ों के पिछलग्गु बनना पसंद करते हैं। अगर वो ऐसा करने में कामयाब हो पाती, तो वाकई बिहार पहले जैसा हो जाता। बिहार को जो छवि मौर्यवंश के शासनकाल और उसके पहले पुरी दुनिया में थी। वहीं छवि फिर से बन जाती। ऐसी बात नहीं है कि मौजूदा समय में बिहार में प्रतिभाओं की कमी है। प्रतिभाएं अभी भी मौजूद है, लेकिन हमलोग उन प्रतिभाओं में गर्व करने की बजाए, गुंडों में नाज करते हैं। हम उदय शंकर, सतीस के सिंह, संजय पुगलिया, पुण्य प्रसून वाजपेयी, रविश कुमार और किशोर मालवीय जैसे लोगों की चर्चा करने से हिचकते हैं, लेकिन जब भी हम अनजान लोगों या दूसरे राज्यों के दोस्तों के साथ होते हैं, तो माफियाओं की गौरव गाथा बड़े ही शान से सुनाते हैं। हकीकत में बिहार से ज्यादा गुंडागर्दी दूसरे राज्यों में होती है, लेकिन वहां के लोग बड़े ही चतुराई से इसे छिपा लेते हैं। यहीं वजह हैं कि मीडिया और प्रशासन पर एकछत्र राज करने के बाद भी बिहारियों को लोग हेय दृष्टि से देखते हैं, जबकि ऐसा करने वालों की बिहारियों से सामने बैठने तक की औकात नहीं है।
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