Friday, November 20, 2009

टैम की मनमानी: आखिर कब तक?

लगता है टैम ने छोटे चैनलों को मिटाने की ठान ली है। इसके लिए उसने एड एजेंसियों से हाथ मिलाया है और अब वो छोटे चैनलों को निगलने के लिए रोज ऊल-जुलूल नियम बना रहा है। ये सब वो अपना पिटारा भरने के लिए कर रहा है। पैसा कमाने के लिए टैम किसी भी हद तक जाने को तैयार दिखता है। सबसे हैरान कर देने वाली बात ये है कि वो न तो सरकार से डर रहा है और न ही उसे अदालती पचड़ों का खौफ है। अब आप सोच रहे होंगे कि हम ऐसा क्यों कह रहे हैं, तो चलिए पहले आपको बताते हैं कि टैम है क्या। टैम एक संस्था है, जो चैनलों की मॉनीटरिंग करती है। टैम सभी चैनलों को तीन तरह के डाटा देता है। इसकी एवज में भारी भरकम फीस वसूलता है। टैम जो तीन डाटा देता है वो हैं- व्यूवरशिप डाटा, चैनल मोनिटरिंग का डाटा और एडेक्स सेवा। व्यूवरशिप डाटा में टैम हर चैनल की टीआरपी यानि टेलीविजन रेटिंग प्वाइंट और जीआरपी यानि ग्रास रेटिंग प्वाइंट दिखाता है। व्यूवरशिप परखने के लिए टैम सभी चैनलों पर दिखाए जाने वाले प्रोग्रामों और खबरों पर नजर रखता है। चैनल मॉनिटरिंग और एडेक्स के जरिए टैम अलग अलग चैनलों पर चलने वाले विज्ञापनों पर नजर रखता है। चैनल मोनिटरिंग के तहत टैम सभी चैनलों ये नजर रखता है कि किसी चैनल पर कौन सा विज्ञापन किसी समय में कितनी बार चला, जबकि एडेक्स में टैम केवल और केवल विज्ञापनों पर नजर रखता है। इन तीनों डाटा को उपलब्ध कराने के लिए टैम ने अपनी अलग- अलग फीस रखी हुई है। व्यूवरशिप डाटा के लिए टैम ने डेढ़ लाख रुपये प्रति माह की फीस तय की है, जबकि चैनल मॉनिटरिंग के लिए वो पचास हजार रुपए महीना वसूलता है। एडेक्स के लिए उसने सभी चैलनों को डेढ़ लाख रुपया प्रति माह देने को कहा है। यानी तीनों डाटा की फीस मिलाकर साढे तीन लाख रुपये। पहले ये फीस टैम अगल-अलग वसूलता था। यानि अगर कोई चैनल सिर्फ एक डाटा चाहता है तो वो सिर्फ उसकी फीस देकर उसे पा सकता था। बड़े चैनल तो तीनों डाटा खरीदते रहे हैं, लेकिन परेशानी छोटे बजट के चैनलों की है। जो टैम की भारी भरकम फीस (3.50 लाख महीना) नहीं भर सकते। ऐसे में छोटे चैनल टैम से कोई एक ही डाटा खरीदते थे और इस डाटा को दिखाकर वे भी ठीक ठाक विज्ञापन ले लिया करते थे। लेकिन अब टैम ने बड़ी विज्ञापन एजेंसियों के साथ अजीब तरह का गठजोड़ कर लिया है। इन एड एजेंसियों ने तय किया है कि वे उसी चैनल को विज्ञापन मुहैया कराएंगी जिसके पास टैम के तीनों डाटा उपलब्ध होंगे। इसी का पूरा फायदा उठा रहा है टैम। अब छोटे खासकर रीजनल चैनलों पर मुसीबत आ गई है। वे टैम के तीनों डाटा खरीदने के लिए साढ़े पांच लाख महीने की फीस आखिर कैसे चुकाएं? अगर ये पैसा नहीं चुकाया जाता तो विज्ञापनों से हाथ धोना पड़ रहा है। अब सवाल ये उठता है कि अगर ये छोटे चैनल टैम के खिलाफ लड़ाई भी लड़ें तो किसके सहारे। उनके लिए तो इंडियन ब्रॉडकास्टिंग फेडरेशन (आईबीएफ) भी किसी काम का नहीं है जो चैनलों को उनका हक दिलाने का नारा लगाता है। दरअसल आईबीएफ ने भी अपनी मेंबरशिप फीस साढ़े पांच लाख रुपये रखी हुई है। इसके अलावा आईबीएफ अपने मेंबरों से हर साल ढाई लाख रुपये की अलग फीस भी लेता है। छोटे चैनल ये फीस भी नहीं भर सकते। आखिर वे करें तो क्या करें? लेकिन ये चैनल भी हार मानने वाले नहीं हैं। ऐसे सभी चैनलों ने मिलकर टैम के खिलाफ एक निर्णायक जंग लड़ने का मन बनाया है। खुद को जिंदा रखने के लिए वे अब एक अलग फेडरेशन बनाने की तैयारी कर रहे हैं। इसके लिए दर्जनों रीजनल चैनलों के संचालकों और निदेशकों की बैठकें भी हो रही हैं। इस जंग में कौन जीतेगा ये बाद की बात है, लेकिन बड़ा सवाल ये बन गया है कि क्या टैम की झोली भरे बिना किसी भी चैनल की सांस चलनी असंभव है? क्या टैम यूं ही अपनी मनमानी करता रहेगा और सरकार देखती रहेगी?

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