Saturday, March 24, 2012

सोची समझी रणनीति की देन है अन्ना का आंदोलन



क्रांति जुल्म की पराकष्ठा का परिणाम होती है। ये अपने साथ विनाश और विकास की एक नई दिशा लेकर आती है। हालांकि इसकी विनाश लीला ज्यादा भयावह होती है। उससे उबरने में काफी समय लगता है। इसमें जान और माल दोनों की काफी बर्बादी होती है, लेकिन एक विकासशील समाज के लिए ये अति आवश्यक भी है। पिछले दो सालों में दुनियाभर में कई क्रांतियां देखने को मिली, जो तानाशाही और भ्रष्टाचार के खिलाफ हुईं। ये क्रांति अपने साथ बर्बादी को लेकर तो आईं, लेकिन विकास की एक नई दिशा देकर गईं। ट्यूनीशिया, मिश्र, लीबिया, यूनान या दुनिया के दूसरे हिस्सों में हुईं क्रांतियां हो या फिर भारत में भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना का आंदोलन। इन सभी क्रांतियों का मकसद आम लोगों को जुल्म से मुक्ति दिलाना था। इनमें से ज्यादातर क्रांतियां या कहें, तो भारत को छोड़ कर सभी देशों की क्रांतियां सफल रही है। फिर क्या वजह रही कि अन्ना का आंदोलन विफल हो गया? आखिर क्यों आम लोग उनके आंदोलन से दूर भागने लगे? आखिर क्यों जो मीडिया अन्ना के आंदोलन का कवरेज करने पागल बना था, वो अब सवाल पूछने लगा है कि कब तक जंतर-मंतर ? आखिर क्या वजह है कि ट्यूनीशिया में एक फेरीवाल आत्मदाह करता है, तो पूरे देश में आग धधक उठती है। लोग सड़कों पर उतर जाते हैं और तब तक दम नहीं लेते हैं, जब तक तानाशाही शासन को उखाड़ नहीं फेंकते। आखिर क्या वजह है कि मोहम्मद बौउजीजी के शरीर में लगी आग की लपटें पड़ोसी मुल्कों को भी अपने चपेट में ले लेती हैं और परिवर्तन की एक नई बयार बहा देती है। लेकिन अन्ना का आंदोलन कुछ दूरी तय करने के बाद ही दम तोड़ने लगा? अगर निष्पक्ष भाव से सोचेंगे, तो ये मालूम पड़ेगा कि दूसरे देशों की क्रांतियों और अन्ना के आंदोलन में बड़ा फर्क है। ट्यूनीशिया जैसे देशों की क्रांतियां किसी सोची-समझी रणनीति की परिणीति नहीं थी। वो एकाएक जन भावना को लेकर उठीं और अपने लपटों में तानाशाही मानसिकता को जला कर भष्म कर दी। इसके विपरित भारत में भ्रष्टाचार के खिलाफ उठ खड़ा हुआ अन्ना का आंदोलन एक सोची-समझी रणनीति की देन है। इसके मकसद के खाके पहले से ही गढ़ लिए गए थे। उसी रणनीति के तहत सबको भावनात्मक रुप से जोड़ने की कोशिश की गई। आधुनिक तकनीक का सुंदर इस्तेमाल लिया गया। सबको एसएमएस, मेल और फोन करके ये जताने की कोशिश की गई कि हम आपके हित की लड़ाई लड़ रहे हैं आप हमारे साथ जुड़िए। हम आपको एक नई दिशा देंगे, लेकिन इसके पीछे एक मकसद छुपा था। जिसकी पूर्ति टीम अन्ना ने एक चौहतर साल के बूढ़े को आगे रख कर पूरी की। जो वाकई कष्ट दायक है। इतिहास इसके लिए अरविंद केजरिवाल, मनीष सिषोदिया और कुमार विश्वास को कभी नहीं माफ करेगा। जिस तरह से इन लोगों ने एक भोले-भाले इंसान का इस्तेमाल किया, वो शर्मनाक है। इन लोगों की सोच कभी देश से भ्रष्टाचार को मिटाने की नहीं रही। इन लोगों का मकसद सिर्फ और सिर्फ पब्लिसिटी गेन करने की थी, जिसकी पूर्ति इन्होंने कर ली। इसी रणनीति के तहत इन लोगों ने चुनाव प्रचार में उतरे के लिए अन्ना को पटाया। अन्ना के आंदोलन ने भले ही देशवासियों को कुछ नहीं दिया हो, लेकिन इन लोगों को इतना दे दिया कि उसे पाने के बारे में इन लोगों ने सपने में भी नहीं सोचा होगा। अन्ना के आंदोलन की ही देन है कि जिन लोग को मुश्किल से दो चार सौ लोग भी नहीं जानते थे, उन्हें पूरा देश जानने लगा।
अब ये लोग पूरे देश को पाठ पढ़ाने लगे।सबको झूठा और खुद को सच्चा बताने लगे है। लेकिन ये लोग भूल रहे हैं कि ये पब्लिक है। सब जानती है।

Saturday, March 10, 2012

एक मौत कई सवाल


एक मौत कई सवाल। सवाल प्राकृतिक सम्पदाओं की रक्षा की। सवाल आम लोगों की सुरक्षा की। सवाल मध्यप्रदेश की सियासत की। सवाल शिवाराज सिंह और उनके सिपारसलारों के उन दावों की, जो वो हर समय ताल ठोक कर दावे कहते हैं कि मध्यप्रदेश में सुशासन है। सवाल राजनीतिक पार्टियों की, खास कर सियासत की बागडोर संभाल रही पार्टियों की संवेदन शून्यता की, जो अकसर देखने को मिलती है। मुरैना में हुई आईपीएस नरेंद्र कुमार की मौत ने शिवराज सरकार को कटघड़े में खड़ा कर दिया है। इस मौत को लेकर हर तरफ से सवालों की बौछार हो रही है और शिवराज सरकार को उसका जवाब देते नहीं बन रहा है। इस मौत के सहारे मैं भी एक सवाल पूछ रहा हूं। हमें आजादी दिलाने वाले जांबाजों ने और देश में लोकतंत्र की स्थापना करने वाले सपूतों ने क्या यही उम्मीद की थी कि आने वाले दिनों में देश की बागडोर ऐसे संवेदनहीनों के हाथ में चली जाएगी, जो किसी शहादत की खिल्ली उड़ाएंगे। सबसे पहले मैं अपनी उस गुस्ताकी के लिए माफी मांगता हूं, जो मैंने इन सवालों की शुरुआत में की है। हकीकत जानने के बाद भी मैंने आईपीएस नरेंद्र कुमार की हत्या को मौत करार दिया है और उसी के सहारे सवाले उठाएं है। मैं इसके लिए शहीद नरेंद्र कुमार के परिजनों और पूरे देशवासियों से माफी मांगता हूं, लेकिन क्या करूं बीजेपी के तथाकथित कुछेक काबिल वक्ता ये मानने को तैयार ही नहीं है कि नरेंद्र कुमार की हत्या हुई है। उन्हीं वक्ताओं में शामिल है मीनाक्षी लेखी। ये बीजेपी महिला मोर्चा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं। मीनाक्षी ने एक टीवी चैनल पर बैठकर जिस तरह से नरेंद्र कुमार की हत्या को लेकर शिवराज सरकार का बचाव किया, वो वाकई शर्मनाक था। मीनाक्षी जी ने जिस बेशर्मी का परिचय दिया, उसको देख कर ऐसा लगा कि अगर ऐसे लोगों के हाथों में हमारे देश की बागडोर है, तो ये मेरे लिए भी शर्म की बात है कि मैं भारत का नागरिक हूं। एक वरिष्ठ पूर्व अधिकारी की बार बार गुजारिश के बाद भी मीनाक्षी जी को अपनी गलती का एहसास नहीं हो रहा था। नरेंद्र हत्याकांड पर बोलते समय में मीनाक्षी की भाव भंगीमा राजनीतिज्ञों की संवेदनहीनता की कहानी बयान कर रही थी। हद तो तब हो गई जब मीनाक्षी जी ने नरेंद्र की हत्या पर अफसोस जताने की बजाए, उल्टे उन पर उगाही करने का आरोप लगा दिया।