Monday, August 13, 2012
दो असफल आंदोलनों की गवाह बनी दिल्ली
बाबा रामदेव कह रहे हैं कि अनशन खत्म हुआ, आंदोलन नहीं। सरकार उनके आंदोलन से हिल गई। कुछ यही कहना टीम अन्ना का है। पिछले एक महीने में दिल्ली दो असफल आंदोलनों की गवाह बनी। पहले जहां दिल्ली ने टीम अन्ना के आंदोलन को निरेखा। फिर बाबा रामदेव की नौटंकी देखी। सैकड़ों लोगों को नारे लगाते और गिरफ्तार होते देखा, तो कुछ लोगों को खुद को पाक साफ और दूसरे को बिकाऊ और भ्रष्ट कहते देखा। टीम अन्ना जहां जंतर-मंतर से खाली हाथ लौटी, वही रामदेव रामलीला मैदान में लीला दिखाकर खाली हाथ लौट गए।
इन दोनों की आंदोलन से आशा की कोई किरण दिखाई नहीं दी। इसके बाद भी ये दोनों सरकार को झुकाने और अपने आंदोलन को सफल होने का दंभ भर रहे हैं। उधर, सरकार भी ये कहने में जुटी हुई है कि देश की जनता ने इन दोनों का असली मुखौटा देख लिया, लेकिन इन सब के बीच एक सवाल बरकरार है। सवाल ये कि इन दोनों आंदोलनों से देश की जनता को क्या मिला? क्या उसे भ्रष्टाचार से निजात दिलाने का कोई जरिया मिला? क्या विदेशों में जमा काले धन की वतन वापसी की किरण दिखाई दी ? जनता बड़ी उम्मीद से इन दोनों आंदोलनों के साथ जुड़ी थी। कहने को लोग तो ये भी कहते हैं कि इन दोनों आंदोलन से जनता का कोई सरोकार नहीं था। बाबा रामदेव के आंदोलन में जहां योग और धन-बल के बुते बुलाए गए लोग थे, तो टीम अन्ना के आंदोलन के साथ ज्यादातर तमाशबीन लोग जुड़े थे। हालांकि मैं इन दलीलों के साथ खड़ा नहीं हूं। इन दोनों आंदोलनों के साथ जिस तरह से भी लोग जुड़े हों, लेकिन उनके भी मन में भी भ्रष्टाचार को दूर करने की चाहत तो रही होगी। वो भी ये जरुर सोच रहे होंगे कि विदेशों में जमा कालाधन वापस आ जाता और देश के विकास में लगता तो उनके जीवन स्तर में सुधार होता, लेकिन ऐसा हो ना सका। ना टीम अन्ना और ना ही बाबा रामदेव अपने आंदोलनों के जरिए कोई ऐसा रास्ता ढूंढ़ पाए, जिससे जनता ये सोचने पर मजबूर हो कि ये जैसे भी है उनके हितैषी है। सरकार ने भी इन आंदोलनों अथवा गरीबी की मार झेल रही जनता की इच्छाओं और भावनाओं का कद्र करते हुए कोई पहल की? हां इन दोनों आंदोलनों से देश की जनता को एक चीज जरुर मिली। उसे अब ये साफ दिखाई देने लगा है कि दो हजार चौदह में होने वाले लोकसभा चुनावों में दो नई राजनीतिक पार्टियां नजर आएंगी और वो भी पुरानी पार्टियों की तरह उन्हें वादों का लॉलीपॉप थमाएंगी। मैं ये नहीं कह रहा हूं टीम अन्ना ने राजनीतिक पार्टी बनाने का ऐलान कर या बाबा रामदेव ने एनडीए नेताओं के साथ नजदीकियां बढ़ा कर कोई गुनाह किया है, लेकिन इतना जरुर कहूंगा कि इन दोनों ने राजनीति में आने और राजनेताओं का दामन थामने का जो जरिया अपनाया वो गलत है। मुझे तो इन दोनों के आंदोलनों को आंदोलन कहने से भी गुरेज है। इतिहास गवाह है कि आंदोलन जब जब हुए हैं, तो पहले विनाश और फिर विकास के रास्ते निकले हैं, लेकिन इन दोनों के आंदोलनों से सिर्फ और सिर्फ विनाश हुआ है। आम लोगों की समय की बर्बाद हुई है। उन्हें मुसीबतों का सामना करना पड़ा है। पैसे की बर्बादी हुई है। इन दोनों ने ही भोली- भाली जनता को मूर्ख बनाने की कोशिश की है।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
maggi paka rahe hai kya bus 2min. or maggi taiyar. ye andolan hai maharaj sabra rakhiye. business nahi hai ki har baar kuch milega hi.....ek saath itni janta ek mudde per khadi hui andolan safal hai.....
ReplyDelete