Wednesday, December 23, 2009

बिल्ले का आतंक

बुधवार को मैं जैसे ही न्यूज रुप में घुसा। असाइंमेंट के मेरे एक दोस्त ने कहा कि सर मैं आज को एक मजेदार न्यूज दे रहा हूं। इसके बाद मैंने कहा कि क्या किसी लड़की ने तुम्हें परपोज कर दिया है कि इतने खुश हो रहे हो? उसने कहा नहीं सर। इन दिनों उज्जैन के बड़नगर में एक खूनी बिल्ले का आतंक पसरा हुआ है। ये सुनते ही मैंने झट से उससे कहा कि तुम बहुत ही संवेदनहीन व्यक्ति हो यार। आतंक की बात कर रहे हो और दुखी होने की जगह खुश हो रहे हो। फिर उसका जवाब आया सर इस घटना में एक मजेदार बात ये हैं कि ये बिल्ला केलव और केवल महिलाओं को ही अपना शिकार बना रहा है। उसके मुंह से ये बात निकली ही थी कि मेरे नजरों के सामने एमएनएस प्रमुख राज ठाकरे का चेहरा मंडराने लगा। साथ ही दिमाग ने अपनी शातिर हरकतें शुरू कर दी। कुछ देर के लिए मैं अपने काम और साथियों को भूल कर ख्यालों में खो गया और तुलना करने लगा कि इस बिल्ले और राज ठाकरे में काफी सम्मानताएं हैं। ये बिल्ला भी खूनी है और राज ठाकरें भी। ये बिल्ला महिलाओं को अपना शिकार बनाता है, तो राज ठाकरे निहत्थे और निर्दोष लोगों को। इन दोनों ही घटना में किसी के आंखों की नींद हराम है, तो किसी को खुशी मिल रही है। बाईस दिसंबर को एमएनएस के गुंडों ने जिस तरह से सिद्धिविनायक मंदिर के बाहर सो रहे निर्दोष साधुओं कहर ढाहा, वो क्या किसी बहशी जानवरों की कहरकतों से कम था। उन बेचारे साधुओं का क्या कसूर था कि दरिंदों ने उन्हें बेरहमी से पीटा। हां तुलना के दौरान उज्जैन के बिल्ले और मुंबई के इस पिल्ले में मैंने जो भिनता पाई, वो ये थी कि उज्जैन के बिल्ले को काबू में करने के लिए वन विभाग के अधिकारियों ने वड़नगर में डेरा डाल रखा है, लेकिन मुंबई के इस पिल्ले पर लगाम लगाने की जगह महाराष्ट्र सरकार ने इस छुट दे रखी है। वो हर बार कोई ना कोई बहान बना कर राज ठाकरे और उसके गुंडों पर कार्रवाई करने से बच जाती है। मंगलवार को भी महाराष्ट्र सरकार ने खबरियां चैनलों के एमएनएस के गुंडों की करतूत दिखाए जाने के बाद जांच करवाने का बहाना बना कर पल्ला झाड़ लिया।

1 comment:

  1. बहुत बढ़िया संतोष जी.. आपका तो जवाब नहीं...

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