Sunday, September 6, 2009

काश ऐसा होता....

कल रात एक दोस्त ने मुझसे कहा कि यार मैं तुम्हें एक ऐसी खबर सुना रहा हूं, जिसे सुनकर तुम हैरान रह जाओगे। मैंने हंसते हुए उससे पूछा ...आखिर ऐसी कौन सी खबर है, जिसे सुनाने के लिए तुम इतने उतावले हो रहे हो। इसके बाद उसने कहा कि बिहार के मोतिहारी जिले में कुत्ता, बिल्ली और तोता एक ही थाली में खाना खाते हैं। यहीं नहीं वो तीनों एक ही साथ सोते हैं। वो आपस में ठिठोलिया भी करते हैं, लेकिन हैरानी की बात ये है कि वो कभी लड़ाई भी नहीं करते । पहले तो मुझे इस पर यकीन नहीं हुआ, लेकिन फिर मैंने उससे पूछा कि ये बातओ ऐसा कारनामा किसने किया है। मेरी बातों को सुनकर उसने कहा कि इस कारनामे को करने वाली एक शिक्षिका है और उसका नाम है शशिकला। महारानी जानकी कुंवर ग‌र्ल्स इंटर कालेज की प्रिंसिपल शशिकला को जानवरों और पंक्षियों से बेहद लगाव है। इसी लगाव की वजह से उन्होंने अपने घर इन तीनों को पाल रखा है। वो इन तीनों को अपने बच्चे की तरह प्यार देती है। ठीक इसी तरह ये तीनों भी उनसे प्यार करते हैं। उन्होंने कुत्ते का नाम टफी रखा है, जबकि बिल्ली का नाम पुसी। वो तोते मीठू नाम से पुकारती हैं। उसकी इन बातों को सुनकर अनायास ही मेरे मुंह उह शब्द निकल पड़ा। मैंने अपने दोस्त से कहा कि काश शशिकला जी उन जाहिलों के दिलों ऐसी प्रेम भावना भर पाती, जो बात-बात पर मारने-मरने को तैयार हो जाते हैं। काश वो राज ठाकरे जैसे नेताओं के दिलों में ऐसी प्रेम पनपा पाती, जो अपनी सियासी रोटियां सेंकने के लिए क्षेत्रियता का बीज बोते हैं। लोगों के दिलों में नफरत की भावना भरते हैं। काश बिहार के उन इलाकों में इस तरह की प्रेम की अलख जगा पाती, जिन इलाकों में लोग पढ़ने की बजाय गुड़ों के पिछलग्गु बनना पसंद करते हैं। अगर वो ऐसा करने में कामयाब हो पाती, तो वाकई बिहार पहले जैसा हो जाता। बिहार को जो छवि मौर्यवंश के शासनकाल और उसके पहले पुरी दुनिया में थी। वहीं छवि फिर से बन जाती। ऐसी बात नहीं है कि मौजूदा समय में बिहार में प्रतिभाओं की कमी है। प्रतिभाएं अभी भी मौजूद है, लेकिन हमलोग उन प्रतिभाओं में गर्व करने की बजाए, गुंडों में नाज करते हैं। हम उदय शंकर, सतीस के सिंह, संजय पुगलिया, पुण्य प्रसून वाजपेयी, रविश कुमार और किशोर मालवीय जैसे लोगों की चर्चा करने से हिचकते हैं, लेकिन जब भी हम अनजान लोगों या दूसरे राज्यों के दोस्तों के साथ होते हैं, तो माफियाओं की गौरव गाथा बड़े ही शान से सुनाते हैं। हकीकत में बिहार से ज्यादा गुंडागर्दी दूसरे राज्यों में होती है, लेकिन वहां के लोग बड़े ही चतुराई से इसे छिपा लेते हैं। यहीं वजह हैं कि मीडिया और प्रशासन पर एकछत्र राज करने के बाद भी बिहारियों को लोग हेय दृष्टि से देखते हैं, जबकि ऐसा करने वालों की बिहारियों से सामने बैठने तक की औकात नहीं है।

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