Monday, August 10, 2009

बूटा का कुर्सी मोह

कुछ समय पहले एक मूवी आई थी लव के लिए साला कुछ भी करेगा....। यह टाइटिल वर्तमान समय के राजनीतिज्ञों पर बिल्कुल सटीक बैठता है। फर्क सिर्फ इतना है कि नेता जी लोग लव के जगह कुर्सी शब्द का इस्तेमाल करते हैं। यानि सीधे शब्दों में कहें, तो कुर्सी के लिए साला कुछ भी करेगा...। अब आप बूटा सिंह को ही ले लीजिए। इन्हें कुर्सी से इस कदर लगाव है कि वे उसे छोड़ना ही नहीं चाहते हैं। बूटा सिंह मौजूदा समय में अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष हैं। १९३४ में पंजाब के जलंधर जिले में पैदा हुए बूटा सिंह केंद्रीय गृहमंत्री और राज्यपाल जैसे पदों पर भी आसीन रहे हैं, लेकिन इसके बाद भी उनका कुर्सी से मोह भंग नहीं हुआ है। वे आज भी कुर्सी को जकड़े हुए हैं। सही मायने में बूटा सिंह कलयुग के धृतराष्ट्र हैं, जो अपनी इज्जत, तो गंवा सकता है, लेकिन कुर्सी नहीं। हाल ही में बूटा सिंह के बेटे सरबजोत सिंह पर एक करोड़ रुपए रिश्वत लेने का आरोप लगा है। इसको लेकर सरबजोत जेल भी गए थे। मामला अल्पसंख्यक आयोग से जुड़ा हुआ है। इस वजह से विरोधी पार्टी के नेताओं ने बूटा सिंह पर हमला बोला। विपक्षी पार्टी के नेताओं ने बूटा सिंह से इस्तीफे की मांग की। इसके बाद बूटा सिंह ने आनन -फानन में प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाया और बेटे पर लगे आरोपों को राजनीति साजिश करार दे दिया। बूटा सिंह यहीं नहीं रुके। उन्होंने विरोधियों पर अपने राजनीतिक करियर को चौपट करने का आरोप लगाया और साफ कह दिया कि मैं मर जाऊंगा, लेकिन इस्तीफा नहीं दूंगा। अब आप खुद ही बताइए कि बूटा सिंह के इस हठ धर्मिता को क्या कहेंगे। छोड़िए आप जो भी कहें, लेकिन मैं तो यहीं कहूंगा कि कमाल के हैं बूटा सिंह और कमाल का है उनका कुर्सी मोह।

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