Friday, August 21, 2009

बीजेपी की भूल

शिमला के चिंतन बैठक में बीजेपी ने अपने एक सिपाही से रिश्ता तोड़ लिया। पार्टी ने अपने उस कद्दावर नेता से मुंह मोड़ लिया, जो पिछले तीस सालों से उसके साथ जुड़ा हुआ था। बीजेपी नेताओं ने शिमला पहुंचे के बाद सबसे पहला काम जो किया, वो था जसवंत सिंह का निष्कासन। हालांकि जसवंत के निष्कासन की स्क्रीप्ट दिल्ली में लिखी जा चुकी थी। शिमला में तो उसे महज सार्वजनिक करना था। दिन में करीब एक बजे पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने जसवंत सिंह को फोन करके उन्हें पार्टी के सभी पदों से हटाने की खबर सुनाई। इससे पहले राजनाथ सिंह ने जसवंत सिंह को फोन करके बैठक में शामिल नहीं होने को कहा था, लेकिन तब तक वो शिमला के लिए रवाना हो चुके थे। जसवंत सिंह पार्टी अध्यक्ष की बात को मान कर बैठक में शामिल नहीं हुए। वो अपने लिए अलग होटल बुक कर पार्टी के फैसले का इंतजार करते रहे। उनकी इंतजार की घड़ी लंबी नहीं हुई। पार्टी अध्यक्ष ने चंद ही घंटे में फोन के जरिए अपना फैसला सुना दिया, लेकिन पार्टी ने जिस तरह से ये फैसला लिया। उससे लोकसभा चुनावों में मिली हार और उसकी बौखलाहट साफ दिखा पड़ रहा है। आखिर जसवंत सिंह ने ऐसी कौन सी गुनाह कर दी है, जिसकी वजह से पार्टी ने उनके साथ ऐसा वर्ताव किया। उनका गुहान सिर्फ इतना ही है कि उन्होंने अपनी किताब में जिन्ना को धर्मनिरपेक्ष करार दिया। साथ ही देश के बंटवारे के लिए जिन्ना के साथ ही सरदार बल्लभ भाई पटेल और नेहरु को भी जिम्मेदार ठहराया है। अगर जिन्ना को धर्मनिरपेक्ष बताने की वजह से जसवंत सिंह को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है, तो फिर आडवाणी के खिलाफ पार्टी ने कोई कार्रवाई क्यों नहीं कर रही है। आडवाणी तो ये गुनाह काफी पहले कर चुके हैं। पार्टी का ये दोहरा मापदंड हमारे समझ से परे है। एक तरह से कहें, तो बीजेपी ने इस कार्रवाई के जरिए जसवंत सिंह के मौलिक अधिकारों का हनन किया ठीक है कि जसवंत सिंह ने पार्टी के विचारधारा के खिलाफ बातें लिखी और इसके लिए उनके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए, लेकिन ये कैसी नीति है कि उन्हें अपने पक्ष को रखने का मौका भी नहीं दिया जाए। उनसे ये नहीं पूछा जाए कि आपने ऐसा क्यों किया। शायद बीजेपी में बैठे जसवंत के विरोधी गुट के नेताओं को ये लग रहा होगा कि इस कार्रवाई को पार्टी जनता के दिल को जीत लेगी, तो ये उनकी भूल है। इससे जनता के बीज पार्टी की छवि और खराब हुई है। जनता को मौजूदा समय में जिन्ना या नेहरू की महिमा मंडल करने की नहीं, बल्कि रोजी और रोटी की दरकार है।

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