Monday, August 24, 2009

हार ने बनाया चिड़चिड़ा

लोकसभा चुनावों में मिली हार ने बीजेपी नेताओं को चिड़चिड़ा बना दिया है। पराजय की पीड़ा ने पार्टी नेताओं को इस कदर तोड़ दिया है कि वो समझ ही नहीं पा रहे हैं कि करें. तो क्या और कहें, तो क्या। इसी नासमझी का नतीजा है कि पार्टी नेताओं की जुबान बेलगाम हो गई है। हर नेता की जुबान से निकली हुई बात पार्टी को पतन की ओर ढकेल रही है। पहले जसवंत सिंह ने चिट्टी लिख कर पार्टी में बवंडर मचाया, तो फिर जसवंत सिंहा ने। कभी किसी नेता ने ये सोचने की जहमत नहीं उठाई कि
जनता ने उन्हें क्यों नकारा। मौजूदा समय में बीजेपी नेता आत्म मंथन करने की बजाय एक-दूसरे को नीचा दिखाने में जुटे हैं। इसी वजह से उतराखंड में बीसी खंडूरी की कुर्सी गई और अब वसुंधरा राजे की बारी है। उनकी विदाई की भी स्क्रीप्ट लिखी जा चुकी है। इस समय बीजेपी नेताओं की दशा खिसियानी बिल्ली खंभा नोंचे जैसी हो गई है। सीधे शब्दों में कहे, तो बीजेपी विघटन की कगार पर है और बहुत जल्द ही पार्टी में बंटवारा होने वाला है। इसकी शुरुआत जसवंत सिंह के निष्कास और सुधीर कुलकर्णी के इस्तीफे से शुरू हो चुकी है। अब बारी अरुण शौरी की है। अरुण शौरी ने तो मान मर्यादा की सारी सीमाएं लांघते हुए पार्टी को प्राइवेट कंपनी तक करार दे दिया है। उन्होंने बीजेपी को कटी पतंग बताते हुए आरएसएस से सभी बड़े नेताओं को हटाकर पार्टी को अपने कब्जे में लेने की गुहार लगाई है। यहीं नहीं उन्होंने राजनाथ सिंह हम्टी-डम्टी कह कर पार्टी हुक्कमरानों से साफ कह दिया है कि मुझे अब मुक्त करो। मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि आखिर बीजेपी नेता इतने हताश क्यों हैं। वो जनता के बीच जाना क्यों नहीं चाह रहे हैं। जब तक वो जनता के बीच नहीं जाएंगे, जनता के लिए काम नहीं करेंगे, तब तक वो चाहे अगल पार्टी बनाएं या फिर किसी पार्टी में शामिल हो जाएं, जनता नकारती रहेगी। बिना काम किए एक बार नहीं हजारों बार उन्हें हार का मुंह देखना पड़ेगा। अब नब्बे की दशक जैसी हलात नहीं है कि राम के सहारे उनकी नैया पार लग जाएगी। जनता अब बीजेपी नेताओं की हकीकत जान चुकी है। अब वो केवल और केवल काम को देख कर ही इन्हें वोट देगी।

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